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दिव्या ज्योति जाग्रति संसथान एक अध्यात्मिक एवं सामाजिक संस्था है जो विश्व भर में गत २५ सालों से अध्यात्मिक जाग्रति व सामाजिक शोधन एवं विकास कार्यों को शांति पूर्ण ढंग से कर रही है. अध्यातम के माध्यम से संसथान ने सर्व धर्म एकता का अपूर्व उदाहरण स्तापित किया है. संसथान की अनेक गतिविधियों को विभिन्न क्षेत्रों, समुदायों, सम्प्रदायों का सहयोग प्राप्त है. दिव्या ज्योति जाग्रति संसथान ने कभी भी किसी सम्प्रदाए, समुदाय आदि का खंडन नहीं किया अपितु संसथान सभी धर्मों के ज्ञान प्रकाश से मानवता को एक सूत्र में पिरोने में विश्वास रखता है तथा संसथान की सभी गतिविधियाँ इसी सर्व धर्म सम्म्भाव के आधार पर चलती हैं. किन्तु कुछ साम्प्रदायीक विभाजन की मानसिकता वाले लोग संसथान के इस सर्व धर्म सम्म्भाव पर निराधार आक्षेप लगाते रहे हैं . पंजाब में अक्सर ये कहा गया की संसथान गुरबानी का सहारा लेकर उसकी व्याख्या अपने अनुसार करते हैं . इस निराधार आक्षेप के प्रतिउत्तर में संसथान के संस्थापक एवं संचालक श्री आशुतोष महाराज जी के निर्देशानुसार संसथान का पूरा साहित्य भी अकाल तख्त को भेजा गया और कहा गया की यदि गुरबानी के सन्दर्भ में साहित्य में कोई भी त्रुटी है तो उसे चिन्हित करें . कुछ वर्ष पूर्व पंजाब के तत्कालीन मुख्य मंत्री श्री अमरिंदर सिंह ने संसथान के साहित्य की जाँच के लिए तीन सदसिये रतन कमीशन का गठन किया . उपरोक्त दोनों जांचों में संसथान के साहित्य में गुरबानी के संधर्भ में कोई त्रुटी नहीं पाई गयी. जाँच की रिपोर्ट रतन कमीशन के चीफ एन . एस . रत्तन ने २ सितम्बर २००२ को मुख्य सचिव वाय. एस . रात्रा को दी थी . रिपोर्ट के अनुसार संसथान के साहित्य में एसा कुछ नहीं पाया गया जिससे सिख समुदाय की भावनाओं को कोई ठेस पहुंचे . इस रिपोर्ट के तथ्यों को टाइम्स ऑफ़ इंडिया, पंजाब केसरी और देश सेवक जैसे अख़बारों ने प्रकाशित किया था . पिछले वर्षों में एक भी बार यह सिद्ध नहीं हो पाया है की संसथान ने कभी भी गुरबानी के सिद्धांतो के विर्रुध कुछ कहा अथवा प्रकाशित किया हो.