Thursday, December 17, 2009
विरोध तर्क से हो,कुतर्क और झूठ क्यों ? - हिन्दीलोक
भारत के समृद्ध राज्य पंजाब की औद्योगिक हिन्दीलोक लुधियाना क्षेत्र में 5 दिसम्बर, 2009 को कुछ असामाजिकतत्त्वों और पुलिस के बीच भड़के विवाद के कारण हिंसा का माहौल रहा। सैकड़ों असामाजिक तत्त्वों का जत्था हाथोंमें नंगी तलवारें लिए पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारियों के साथ जा भिड़ा। कारण-दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थानके संस्थापक एवं संचालक श्री आशुतोष महाराज जी द्वारा दो दिवसीय आध्यात्मिक प्रवचनों के कार्यक्रम काआयोजन।
इन असामाजिक तत्त्वों का श्री आशुतोष महाराज जी पर यह आरोप है कि वे सिखों के धर्मग्रंथ श्री गुरु ग्रंथ साहिबजी को तोड़-मरोड़कर न सिर्फ सिखों को बरगलाते हैं बल्कि उनके धर्म गुरुओं का अपमान भी करते हैं। परन्तुविचारणीय बात तो यह है कि दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान से पंजाब व विश्व भर के लाखों सिख अनुयायी जुड़े हैं।क्या वे मूर्ख हैं, जो संस्थान के कार्यक्रमों में सम्मिलित होते हैं? या उन्हें अपने धर्म की समझ नहीं है? 5 दिसम्बरके दिन ‘दिव्य उद्बोध्न’नामक आध्यात्मिक सत्संग कार्यक्रम में भी लाखों की संख्या में सिख उपस्थित थे। क्या वेवहाँ गुरु साहिबानों का अपमान सुनने आए थे? क्या यह संभव है कि जहाँ श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का निरादर हो वगुरु साहिबानों का अपमान हो, वहाँ इतनी बड़ी संख्या में हर वर्ग से संबंधित सिख नित्यप्रति श्री आशुतोष महाराजजी के दरबार में जाएँगे? क्या इससे कहीं भी यह अनुमान तक लगाया जा सकता है कि असामाजिक तत्त्वों ने जोमहाराज जी पर आरोप लगाए, वे सत्य हैं?
वे असामाजिक तत्त्व जो पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में ‘खालिस्तान जिन्दाबाद’ के नारे लगाते दिखाई दिए, उनकादिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान पर यह भी आरोप है कि इनका साहित्य सिख विरोधी तथ्यों का प्रसार करने वालाहै। परन्तु शायद वे यह नहीं जानते कि इस बात का खंडन तो कानूनी तौर पर संस्थान गत् 25 वर्षों में कई बार करचुका है। सन् 2002 में, रतन कमीशन ने संस्थान के साहित्य की जांच की तथा उसमें कोई दोष न पाते हुए संस्थानको क्लीन चिट दी। तीन सदस्सीय रतन कमीशन का गठन तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह द्वारासंस्थान के साहित्य की जांच के लिए किया गया था, परन्तु उसके हाथ कुछ न लगा तथा मीडिया ने भी इसकाजमकर प्रसार किया। टाइम्स ऑफ इंडिया, पंजाब केसरी, देशसेवक जैसे अखबारों ने भी असामाजिक तत्त्वों कीअपेक्षा संस्थान को ही सही ठहराया।
श्री आशुतोष महाराज जी पर लगाए गए ये आरोप कि वे श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी पर बैठकर सत्संग करते हैं या वेखुद को सिखों का ग्यारहवाँ धर्मगुरु बताते हैं, सरासर बेबुनियाद है। महाराज जी कहते हैं कि ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब’तोज्ञान का सागर है, जिसमें डूबकर इसकी एक-एक वाणी को अपने जीवन में धरण किया जाना चाहिए। क्या ऐसे मेंवे उस पर बैठकर कभी सत्संग कर सकते हैं? तथा जो यह कहते हैं कि वे खुद को सिखों का धर्म गुरु बताते हैं, उनसेहम यह पूछना चाहेंगे कि महाराज जी ने ऐसा कब और कहाँ कहा है? क्या वे इस बात का कोई सबूत दे सकते हैं? नहीं, क्योंकि ये सभी बातें निराधर और मात्रा मिथ्यारोपण हैं।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी किसी भी एक धर्म सम्प्रदाय का नहीं है। क्योंकि श्री गुरु अर्जुनदेव जी ने इसमें मात्रागुरु-साहिबानों की ही नहीं, बल्कि और भी अनेकों संतो की वाणी को सम्मिलित किया है, जो कि पंजाब क्षेत्र के भीनहीं थे। जैसे कि उत्तर प्रदेश के संत कबीर, महाराष्ट्र के संत नामदेव और पश्चिम बंगाल के संत जयदेव आदि। औरयही कारण है कि गुरुवाणी को ‘सर्बसांझी गुरुवाणी’ भी कहा जाता है। और फिर श्री गुरु नानक देव जी के विषय मेंभी तो कहा गया, ‘नानक शाह फकीर, हिंदुओं के गुरु, मुसलमानों के पीर।’ तो फिर भला ऐसे युगपुरुष पर मात्रा एकही सम्प्रदाय के लोगों का आधिपत्य कैसे हो सकता है?
श्री महाराज जी पर दोषारोपण करते हुए असामाजिक तत्त्व कहते हैं कि उन्होंने अपने एक वक्तव्य में यह कहा किहिन्दू ही सिखों के पूर्वज हैं।’तो उन असामाजिक तत्त्वों को यह भी पता होना चाहिए कि स्वयं जत्थेदार पूरण सिंहने भी अपने एक लेख में लिखा है कि सिखों में बेदी और सोढ़ी जातियाँ श्री राम के पुत्रों लव और कुश की वंशज हैंऔर यह तथ्य दशम ग्रंथ के ‘विचित्रा नाटक’ में भी दर्ज है।
यहाँ एक बात स्पष्ट कर देनी अत्यन्त आवश्यक है कि दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान और सिख समुदाय के बीचकोई अनबन नहीं है। बल्कि यह सारा फसाद तो उन मुट्ठी भर असामाजिक तत्त्वों की रचना है, जिनका ध्येयराष्ट्रीय एकता का खंडन तथा शांति को भंग करना है। नहीं तो क्यों वे कभी शांति से बैठकर दिव्य ज्योति जाग्रतिसंस्थान के साथ इस समस्या का समाधान नहीं खोजते? क्यों हमेशा तलवारों, लाठियों व बंदूकों का सहारा लेते हैं? सिख सम्प्रदाय तो हमारा सत्संग सुनता व समझता है। जिस दिन यह फसादी हिंसा हुई, उस दिन भी लुधियाना केसमागम में लाखों सिख मौजूद थे।
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की स्थापना सन् 1982 में श्री आशुतोष महाराज जी ने पंजाब में उस समय की, जबवह प्रांत आतंकवाद, अलगाववाद व हिंसा की आग में झुलस रहा था। जब हिन्दू सम्प्रदाय के लोग तथा लगभगसभी धर्म गुरु पंजाब से पलायन कर रहे थे, तब श्री आशुतोष महाराज जी ने वहाँ प्रवेश कर शांति की अलख जगाई।जन समुदाय को ‘ब्रह्मज्ञान’ प्रदान कर अध्यात्म के माध्यम से आन्तरिक रूप से बदला। उन्हें एकता व भाई-चारेका पाठ पढ़ाया। तब से आज तक संस्थान पंजाब में अध्यात्म ज्ञान के साथ-साथ अनेक समाज सुधर के कार्यों मेंभी संलग्न है। संस्थान ने यू.एन.ओ.डी.सी. के सहयोग से पंजाब के पिछड़े हुए भागों में जाकर हजारों युवाओं कोनशे की चपेट से मुक्त किया। महिला वर्ग के समान अधिकारों, पंजाब की ज्वलंत समस्या- कन्या भ्रूण हत्या, वातावरण-संरक्षण तथा साक्षरता के महत्त्व के विषय में जागरूकता फैलाई। इसके विपरीत वे जो इसका विरोधकरते हैं, वे ‘खालिस्तान जिन्दाबाद’ के नारे लगाते हैं। वे खंडता में विश्वास रखते हैं तथा वे भारत देश को खंड़ित करएक नया ही देश बनाना चाहते हैं।
मादक पदार्थों के अभ्यस्त बिगडै़ल हशारों युवकों व अनेक बुराइयों में लिप्त लाखों लोगों को महाराज श्री ने उनबुराइयों से मुक्त कर न केवल उनके परिवारों को एक नई सुबह दी, बल्कि पूरे राज्य में प्रेम, सद्भावना व भाईचारे केसाथ मिलकर रहने का वातावरण भी निर्मित किया। आज लाखों लोग ‘सरबत के भले’ के सीधे व अलौकिक मार्गपर चल पड़े हैं। इसलिए इस संस्थान के धवल दामन पर छींटें उड़ाने व इसका विरोध् करने वाले वास्तव मेंमानवता और राष्ट्रीयता के प्रति एक जघन्य अपराध् कर रहे हैं। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा प्रखर राष्ट्रवादके उद्देश्य से पंजाब राज्य में लाई जा रही परिवर्तन की क्रांति से जहाँ सभी धर्मों के आस्थावान लाभान्वित वप्रभावित हैं, वहीं धर्म के नाम पर राजनीति की दुकानदारी चलाने वाले पूरी तरह भयभीत हैं। हम राष्ट्रीयता, मानवता और विश्व के प्रति सद्भावना रखने वाले सभी सज्जनों से आग्रह करते हैं कि वे इन असामाजिक तत्त्वों केराष्ट्रीय खंडन के मंसूबों को पूरा न होने दें। जैसा कि चाणक्य ने भी कहा- ‘समाज को दुष्टों की दुर्जनता से उतनाखतरा नहीं है, जितना की सज्जनों की निष्क्रियता से है।’
(ये लेख श्री आशुतोष महाराज जी की अनुमति से दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के महासचिव स्वामी नरेन्द्रानन्दने लिखा है)
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विरोध तर्क से हो,कुतर्क और झूठ क्यों ?
http://www.hindiblogs.com/swami-narendranand-on-ludhiana-clash.html